अंतिम जोर पर है
सांसों का धीमे-धीमे चलना
न जाने किस कस्ती को
छूपाये है
इन आंसुओं के मध्य
रहीमन मझधार लिए
अठखेलियों ने
गजब ढारा है
जीवन के इस प्रयाय को
मिथ्या है
मिथ्या है -
अज़ब खेल रचाया है
भाव पूंज की सीमा तल
रुदन अम्बार लगाया है
ले चल कहीं दूर
अपनों का जहाँ निशान ना हो
आशियाना वही
जहाँ अशांती विलोम हो
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