बड़ी प्यास सजी है
होंठों पर, हे कांहा
जरा दरस तो दिखला जा
बांसुरी की मधुर तान से
मन को ह्रदय में बहा ले जा
नैँना मेरे सावन भादो
हुआ जाता है
सपनों का असंख्य पंख लिए
फिरता हूँ रात दिन
तेरे इन्तजार का पहर लिए
अब तो आजा
नटखट सा उपहार लिए
वंचित हूँ; दिन के ऊजाले में
रात का प्रहार लिए
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