स्वर को चित्रित करती
स्वरणीम् आखेट का
एक पहर
उसके नैसार्गिक प्रवाह का
अभिभूत हूँ मैं
जन्म जन्मानतार का जो अंगीकार कराती
हरेक प्रत्यय का
बोध कराती
लोम-विलोम का पान कराती
स्वर के ह्रिदय तल में
इस कछार से उस किनार तक का
आपरूपी भान कराती
निर्बोध मैं का बोध कराती
विच्छिप्त आस का परिहास कर
सम्पूर्ण समाहित करती है
स्वर को चित्रित कर
जन्म-जन्मानतर से परे
सम्भ्रम का भेद मिटाकर संजोग वह जूटाती है
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