उनकी बातों का
अब क्या गिला और क्या शिकवा
बड़ी तबीयत से ऊछाला था, मैने
ये दिल अपना
ना वो मुझे पकड़ सका
ना दिल में वो जप्त रही
उन्हे फिर वापस बुलाने का
बड़ी चोटिल है
शब्दों का पास रहना
ना सुनाया जा सका
ना समझाया जा सका
एक कूफर् सी जमी है दिल में,
क्या कहकर
उसने मुझे काफिर बना दिया
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