सुनसान राहों पर
निश दिन उनकी आने की
एक आहट सी गुजरती है
मिलन की अप्रतिम, अदृष्य
आस जगाती है
कभी तो आओ
दुलार हांथों का
उपहार लिए
सूनी सी सूनी है
टहनियों पर पत्तों का
आँचल से विमुख होना
सालती है
तेरी निशान पर
आश्रित, टीमटीमाती
आंशुओं का
अटूट फलक विस्तार -
निश दिन यूँ हीं टपक जाना
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