उसने अपने आप से
अपनी ही बात कहनी चाही थी, परन्तु
जीवन के झुरमुट में
वो बात
सांसों में उलझकर
कहीं खो गयी
ना उससे कुछ कहा गया
न ही मैंने कोई ज़ोर ज़बरदस्ती की
अशब्द का सहारा लिए
कई बार अपने आप को समझाने की कोशिश की
कि, क्यूं कभी
मुरझाते वृक्ष
फलीत होते नहीं
अब तो
शब्द भी खोखले जान पड़ते हैं
मरघट सी एक विचित्र शांति,
जिव्हा में थरथराने लगी है
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