असद, मैं को
मैं का फितरत तो दे
तू मेरा नहीं बनता
तो अपना तो बन
ओ अल्लाह के वारिस
नए ज़माने के आँखों में
इस्क-ए-फरिस्ता पैदा कर
आदम में खुदा-बन्दी तो कर
गाफिल न हो खुदी से
तू भी बागबानी कर
हरेक गुल-ए-नाज में
अपना मकाम पैदा कर
तन तो आता जाता है
यह फ़किरी हर्फ है
ताज अपने दिल का ओढ़
अमीरी का नाज तो दे
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