Monday, August 26, 2019

महिमा-गान

खुली खुली सी, थकती 
अर्ध-सुप्त आँखें
भावातित से परे
निह्शब्द 
निर्झर
तकती है
क्षितिज की ओर
विन्यस्त
मूक विन्यास लिए
 
अंतिम क्षण का, सजल
बोध कराती 
चली है 
चली है कहीं दूर
गगन की छाॅव में
एकाग्र
अग्रसित
शुन्य
महिमा-गान लिए

त्रिपुरारी

हे त्रिपुरारी
हे जग के पालनहार
हर्षित कर
उद्वेलित मन के विकार 
हर्षित कर

शांत पहर का
विराट प्रहरी
पूर्ण कर
आस्था का
सम्यक विस्तार

काल की
वमनस्य बेला में
हरित कर
तपित भूमि का
रुदन विलाप 

विहुल हूँ
अश्रुधार जलप्रपात लिए
अपने दर्शन का
एक आस बंधा
नभ के हर स्पर्श को कुन्दन कर

हे त्रिपुरारी
मन हर्षित कर...

दुशवारी

दुशवारी में
मयस्सर होते नहीं
गम-ए-हस्ती का ईलाज 

मेरे कत्ल के बाद
उसने क्या रंग ज़माया
की जफा से तौबा  

अब और क्या सुनाऊँ
अहल-ए-जहां को किस्से
बस्तियां विरान हो गयी

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दुशवारी = trouble times
जफा = atrocities
अहल-ए-जहां = people