हरेक वक़्त टिसती है
उनका मेरे ख्यालों में
हरदम आना
वितृप्त सा है
रूँधी कंठ का
बेजूबां होना
अनेक प्रतिती का
संभार लिए
आशा का दीप जालता हूँ
कब वो आयेगी
दुलार का, असीम
प्रकार लिए
क्या बोलूं , कैसे बोलूं
निह्प्राण सा लगता है
शब्दों का निर्जीव होना
एक आँचल प्यार का, अविरल;
ह्रिदय में बसाती जाना
ए माँ!
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