फिज़ा में यह शोर कैसा
एक तुफान सा लगे है
अब तो शान्त रहने पर भी
लोग ऊंगली उठाने लगे हैं
उस आवाज की दस्तक
कहाँ गुम सी हो गई
अब तो बुलाने पर भी लोग
सिरहाने सर छूपाने लगे हैं
इस खुमारी में भी
कहकहे के राजदार और भी हैं
ख्वाइस-ए-बन्दिस भी अब
नागवार गुजरे है
ताल्लुकात का ज़रिया
अब यूँ भी है
मेरे शुकुन में
दर्द का सरमाया क्यूँ है
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