एक अपने का बोझ लिए
कौन किसे बिसराये रे
जीवन की छनभन्गुरता
किस आस लिए तड़पाये रे
एक प्याला जीवन का
किस किस का पान कराये रे
इस बुझती प्यास का
अंत कहाँ से ले जाये रे
निर्बोध इस मोही का
कौन कौन पथ भटकाये रे
एक अपने का बोझ लिए
किस किस को सताये रे
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