नीरिह प्रवाह सी
गुंजायमान है कोई
लहरों की आखरी हिलोर लिए
व्यकुलता का शब्द से परे
विलुप्त हो जाना
कौन कौंधता है आश्रित भाव लिए
सरमाया हूँ
किसी गौण की
टिसती हुई सब्ज का
कौन रहता है यहाँ
जीवन भर के लिए
आखरी सांस का बाजार रंग लिए
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