किसी अदृश्य का दृश्य हूं
पता नहीं कौन है
जिसके स्पर्श का
परिणीत अन्श हूं
पृथ्वी, आकाश, जल और वायु का
एक प्रतिबिंब हूं
इस मूढ़ मैं का
शाष्वत रूप हूं
असंख्य आवाज का
सम्मिलित एक अहसास हूं
शान्त प्रगाढ़ का अवर्णित
सांसारिक विस्तार हूं
लिप्त होती है
आत्मिय भाव का
मैं का 'मै' में विलय होना
ना चाह, न चाहत
दृश्य का सम्पप्रति अदृश्य होना
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