उल्काओं का गिरना
एक प्रतिती रुप लिए
निबद्धता प्रामाणीत करती है -
सजल टूट पड़ती है
आकाश से जमीं पर
उसकी यह तारतम्यता -
वाक , चक्छू और आत्मा
एक सम्पूर्ण वांगमयता की
मूल प्रवाह है
कींचित भी दोशारूपित नहीं है
जो विज्ञता है
वही प्राण है -
विरलों की अनुभूती है
सोम है
आत्म पुष्प है
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