आखरी सांस, और
धमनियों का बंद होना
एक खुली आवाज का
सांसारिक लोप हो जाना
सजीव प्रतिमा का
आखरी बोध
निर्जन, निर्लीप्त
अगाढ़ शुन्य विलाप
कहीं और
कहीं और उस जहां में
टिस करता प्रतीफल
प्रतिपल
मैं का बोध
ना रहा
यह अंतिम छण
एक अंतिम छंद
कपस कपस सा
अश्रू धार
अलंकृत बोध कराता
जीवन का यह झंकृत ताल
शुन्य का उपहार लिए
चली है वह
चली है जहां से कोसो दूर
अपना पुन्य प्रताप लिए
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