किसी मुहाने से, बेकल
किसी आवाज का
कराह जाना
ठुंड पड़ी दरख्त में
किसी दर्द का
यूँ हीं समा जाना
रूसवाई ज़िन्दगी का
भरे आसमान में
यूँ हीं आस लगाये परे रहना
उन टटोलती ऊंगलियों का
अदृष्य
कयास लगाना
बेमानी सी कोई
बेमानी है, वरना
सहर ज़िन्दगी का श्याह क्यों है
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