उनकी हर बातों का नजराना
अब मैं क्या पेश करूँ
मैं खामोश रहता भी हूँ तो
एक आहट सी सुनाई देती है
शमा जलती भी है तो
नूर-ए-आफताब की तरह
दरिचे उम्र में रखा क्या है
जहाँ पूरा आसमाँ खाली है
सजा का हकदार मैं भी हूँ
और तुम भी
शहर-ए-रानाई मुझ में भी है
और तुझ मैं भी
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