दो सूखे पेड़
और लटकती टहनियों के बीच
एक बात सहमी सी
सूनी है
जकड़ है
इन बातों में
क्यों कर कोई
कहीं बुलाता है
अजीब वीरानी है यहाँ
जिससे पूछता हूँ
वही गिरे पत्तों में
हकिम की दवा ढूंढता फिरता है
अब औरों की
गुंजाइश नहीं
तार तार सा लगता है
समय का फलना यहाँ
एक पर्याय ढूंढता हूँ
अपनों का, अपनों मैं
सभी तो हैं
पर आकाश में तारे टिमटिमाते क्यों हैं