Sunday, June 3, 2018

तूफ़ान सा क्यों है



लहरों की हंसी पर
कभी इठलाता हूँ मैं
कभी ख्वाब बन
आसमां से बरस जाता हूँ मैं

वक़्त की सरगोशी से
पैहम है रात और दिन का होना
चंद लम्हों पर
निढाल सा परे रहना

गैरत में अमादा है
रूह का फिक्रमन्द होना
वरना समंदर में
ये तूफ़ान सा क्यों है 

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