Sunday, June 3, 2018

पास हो तुम



पास हो तुम, फिर;
दूर, विचरते क्यों हो

हे करूणानिधि
विकार विनाशक
हे पालनहार
दृश्य दिखाते क्योँ नहीं

मन विचलित है
नित् , अश्रुधार लिए
ताप, तम संलिप्त
कई रात अन्धकार लिए

चित्त शाषित है
मन आह अग्नि लिए
जय हे, जय हे
हे तारक, विकार विनाशक

पास हो तुम, फिर;
दूर, विचरते क्यों हो
हे दात्री, हे दयानिधि

तुम्हे पुकारूँ
या भक्ति करूँ
मन पाक है, प्रहार कैसे करूँ
भाव सागर पार करो हे पालनहार

भ्रमित हूँ
खण्डित  प्रचंड अपार लिए
पास हो तुम, फिर;
दूर, विचरते क्यों हो 

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