Saturday, April 21, 2018

भाव विहीन सा


हल्के कदम से
कोई आता है
स्वर्णीम् पल का
आगाज लिए
दिशा दोष को मिटाता -
विलुप्त होते 'मैं ' को
एक नई जगह
का भान कराता
कोई है
कोई है जो
बीज बोता, यहाँ
निवृत्त भाव लिए
पंखों का संसार लिए
पंख फैलाता
टीमटीमाते आँखों का;
अर्पित, आपरं अपार लिए
अभी वक़्त है
निर्लज जग हंसाई का
फिर कौन मरता है, यहाँ
अमृत्व भाव लिए
हल्के कदम से
कोई अाता है , और
फूर्र उड़ जाता है, करके
भाव विहीन सा

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