Tuesday, April 24, 2018

मौन-व्रत



कहीं दूर तक
जहाँ तक
नज़र जाएगी
तकते रहेंगे
लोकातीत
तुम्हारे आकाश को हम
चंद लम्हों की सौगात लेकर

फिर मिले, हम
न मिले
यादें विचरती रहेंगी -
कहीं दूर तलक
लुग्दियों से भरी
जमी हुई आकाश में

तुम्हारे शब्दों का
अस्तित्व ख़त्म होगा जब
एक पूर्ण आकाश -
अस्थिविहीन ठठरी को
सजायेँगे हम
तुम्हारी वीरानगी का


मौन व्रत लिए

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