Sunday, April 15, 2018

आसिफा तुम्ही हो न ...



घटक श्मशान पर
वाज़िब है
परे रहेंगे
लाशों के ढ़ेर
और
जलती रहेगी चिता, अट्टहास -
झिलमिलाते पानी में

दफ़न है
दफ़न है,
बेमानी सी जिन्दगी
यहाँ
अमावस पहर लिए

क्यों पनाह
देते नहीं तुम.
अविरल हो -
ऐसे दिखते क्यों नहीं

मैंने अपने पर
गुजरते
कभी दर्द पाया नहीं
आदमी हूँ न -
अस्मिता लूट जाने
की चीख़ कभी सुनी नहीं

बेटियों का बाप हूँ न
ऐसा लगता है की
कमी सी रह गई है मुझमें

फिज़ा में शोर है.
सुनाई देता क्यों नहीं
लहू टपकते क्यों नहीं
जमी हुई आँखों से

आशिफ़ा तुम्ही हो
तुम्ही हो न ...


मेरी बेटी सी

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