बड़े सुकून से सोते हैं
रात में परिन्दे यहाँ
एक मैं हूँ
जो पंख फैलाये जाता हूँ
हज़ार नमाज़ों में
सजदा करता फिरता हूँ मैं
एक अज़ान सी सुनाई देती है
कहीं दूर चारागर लिए हुए
वक़्त ने मुझे बदरंग किया
रात दिन नवाजते हुए
वरना कमी नहीं थी
स्याह भरी रंगों की वहाँ
अभी भी सालती है
करवटें बदलना उनका
अनकहे पहलूओं में
क्या दर्द छुपा रखा है
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