Monday, May 21, 2018

निर्मल



कण कण में फैलाती
अरुण कमल
विप्र धार
सहज संजोए
शांत सरल
भाव यह कितना निर्मल

पूज्य प्रणय
प्राण सकल
मोक्ष वन्दना
हर दिन, हर पल
कितना निश्छल, ह्रदय
वरुण तल

रिमझिम रिमझिम
बरस
भावेग में बह
पसर पसर
कितना निश्छल, कितना निर्मल 

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