अभी वक़्त है रत्जगी करने को
कब गुज़र जायेगा यह पल
आँखों में धूल झोंक कर
साँस के अंतिम बल पर
चलो रात का गुलाब खिलाते हैं अभी
चाँद को सूरज से मिलवाते हैं अभी
कब भोर प्राण पखेरू का प्रमाण लाएगा
बिस्तर पर राख बिछायेगा
अभी वक़्त है पास बुलाने का
एक स्वप्न साकार करने का
एक मूर्ति को तरासने का
सहस्त्र हांथों से हार को जीत बनाने का
No comments:
Post a Comment