गम जदा हूँ -
एक दबी सी आवाज़ में
ढूँढता हूँ उसे
हल्की सी आस लीये
सुर्ख है कोई
आँखों में तपिस लिए
निस्सार सी
चाहत लिए
गम जदा हूँ -
बेखबर तकते हुये
हौले से आसमां की
वीरानगी लिए
कई मर्तबा
टटोला है
अपने आप को उसके लिए, पर
जिंदा हूँ ज़ीस्त नहीं है
गम जदा हूँ -
कई बार फेरा है
लहू को, बेरंग
नब्ज़ों सी चाल में
पुकारने की आस भी
मिट सी गई है
एक अस्थी को
सजाये बैठा हूँ
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