साल उठती है, भग्नता
खंड खंड
वक्ष स्थल के भाल पर
एक दरिद्रता, दमित है
अक्षर असंख्य लिए
लेखनी को जप्त करती
आह हज़ार लिए
आकार टटोलती, जिव्हा
वक्र है
बरगत के डंठल की तरह
एक नाप का फर्क है
बित्ता भर ज्ञान में
कुछ ही गज का फासला है
सहर और शहरयार में
PS -
सहर = Pain of the night
शहरयार = Friend of the dawn


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