सहस्त्र हांथों से
दूलार पाती
कोपलें आसमां चूमतीं हैं
वज़ीफा ए ऐतबार का,
ज़ुबान लब चूमती हैं
उनकी आँखों में
पनाहगार की सुरत देखो
कितनी हरियाली लाती है
सराबोर करती है,
रहमत ख़ुदाई की
ज़र्रा ज़र्रा खिल उठता है
उसकी ज़ारदोजी के हुनर से
टिमटिमाते हैं फ़रिश्ते
नए जोश से
नदियों और पहाड़ों पर
सहस्त्र हांथों से
दूलार पाती
कोपलें आसमां चूमती हैं
वज़ीफा ए ऐतबार का
फक्र ए ऐतमाद पाती हैं