Tuesday, September 26, 2017

कोमलता

बड़े भावुक और नम्र भाव से
गोधूलि में
उसे निहार रहा था 
एक छोटे से गमले में रखे
पनपते
उस कमसिन
नन्ही सी जान को
पत्ते श्याह हो चले थे
उदास भरी शाम में
हवा भी मंद मंद बह रही थी
ना जाने किस आंचल
के दुलार में
छत पर
अध् पकी नज़रों से
टकटकी लगाए
कोई उकेर रहा था
एक ग़मगीन ख्वाब
काले बादलों के झुंड से
समय बीतता गया
उमर घुमर
रात के आग़ोश में
फर्क बस मैं का था-
कोमलता आँसू बन
रात भर भटकता रहा
उस नन्ही सी जान को
सहलाते हुये

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