Monday, September 25, 2017

इन्तेजार



इन्तेजार था एक पन्ने का
चिठ्ठी भरी याद का
बड़े उन्नत भाव से
आंखे पसारती थी
खबर आने का
लाल रंग वाली
भारतीय डाक-तार बस का
अब वो दिन रहा नहीं
जोर जोर से हरफों को
निज बनाने का
परिवार को सुनाने का
आज तो समय भी लद गया है
हाटमेल और इमेल  के चले आने से
रंगत भी छोड़ चली है
माटी अपने हीं शुगंध की
अब और कहाँ, और किसका इन्तेजार

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