Thursday, September 14, 2017

बन्दिश

अपनेआप की बन्दिश 
जब प्रार्बध खंगालती है 
उसके होने का असर 
जमाना प्रनव करता है 
मैं कौन हूँ कहने को प्रदाता 
वही है जो निहाल कराता है 

वंचित क्यूँ है, यहां 
आत्मा का झुझारूपन 
सिमट आती है प्रदाह सूरज की 
जब फनकार फन सुनाता है 
वही है लिप्त आगोश लिए 
शब्दों सा फरियाद लिए

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