अपनेआप की बन्दिश
जब प्रार्बध खंगालती है
उसके होने का असर
जमाना प्रनव करता है
मैं कौन हूँ कहने को प्रदाता
वही है जो निहाल कराता है
वंचित क्यूँ है, यहां
आत्मा का झुझारूपन
सिमट आती है प्रदाह सूरज की
जब फनकार फन सुनाता है
वही है लिप्त आगोश लिए
शब्दों सा फरियाद लिए
जब प्रार्बध खंगालती है
उसके होने का असर
जमाना प्रनव करता है
मैं कौन हूँ कहने को प्रदाता
वही है जो निहाल कराता है
वंचित क्यूँ है, यहां
आत्मा का झुझारूपन
सिमट आती है प्रदाह सूरज की
जब फनकार फन सुनाता है
वही है लिप्त आगोश लिए
शब्दों सा फरियाद लिए
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