Tuesday, September 12, 2017

वज्र



वज्र सा बैठा है
एक एहसास
किस करवट लेगा
मौन व्रत का
यह इतिहास

कई सदियाँ
गुज़ार गई
लम्बी आहें] लेती
धूल चाटती
एक जवलंत इतिहास

कोमल पंखुरिया
रक्त रंजीत हुई
एक तड़प
धारण कर, उद्वेलित
अंतर  मन का पाश

और अभी बाकी है
नदियों और नालों में
लाल लहू का घुलना;
जमी हुई रक्त पर
कोपलों का फूटना

वज्र सा बैठा है
एक शीलकाय अखण्ड
मौन व्रत जब टूटेगा
अंगड़ाई लेता
ज्वालामुखी विशाल

No comments: