वज्र सा बैठा है
एक एहसास
किस करवट लेगा
मौन व्रत का
यह इतिहास
कई सदियाँ
गुज़ार गई
लम्बी आहें] लेती
धूल चाटती
एक जवलंत इतिहास
कोमल पंखुरिया
रक्त रंजीत हुई
एक तड़प
धारण कर, उद्वेलित
अंतर मन का पाश
और अभी बाकी है
नदियों और नालों में
लाल लहू का घुलना;
जमी हुई रक्त पर
कोपलों का फूटना
वज्र सा बैठा है
एक शीलकाय अखण्ड
मौन व्रत जब टूटेगा
अंगड़ाई लेता
ज्वालामुखी विशाल
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