Thursday, January 25, 2018

नक्शे माज़ी



वो जब मिले थे  ख्वाबों में
नक्शे माज़ी कि तरह
अब सहर के उजाले  में
यह दाग दाग सा फिर  क्यूँ  है 

एक आरजू  थी फलक  पर 
चाँद सितारों  कि तरह
कौन शुबकता है अब यहाँ 
उनवान, ठहर ठहर

बहुत करीन था मौज-ए-हसरत
सफिना-ए-गम-ए-दिल लिए हुये
उनकी रुख्सती को  ढूँढती है
ये आंखे आंसू  हजार लिए

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