वो जब मिले थे ख्वाबों में
नक्शे माज़ी कि तरह
अब सहर के उजाले में
यह दाग दाग सा फिर क्यूँ है
एक आरजू थी फलक पर
चाँद सितारों कि तरह
कौन शुबकता है अब यहाँ
उनवान, ठहर ठहर
बहुत करीन था मौज-ए-हसरत
सफिना-ए-गम-ए-दिल लिए हुये
उनकी रुख्सती को ढूँढती है
ये आंखे आंसू हजार लिए
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