गुम हुए आवाज़ पे
सिहर उठता हूँ
अब भी ग़मो की
मंद मुस्कान, जब
रोशन जदा होती है
सिहर उठता हूँ
अब भी ग़मो की
मंद मुस्कान, जब
रोशन जदा होती है
हवाओं में सिसक सी
एक कस्ती सरकाता हूँ
आंसुओं की पतवार लिए ;
सिसकते बाजुओं में
ये प्यार कैसा
एक कस्ती सरकाता हूँ
आंसुओं की पतवार लिए ;
सिसकते बाजुओं में
ये प्यार कैसा
आप ही खेता हूँ
आप ही
पीड़ पतवार लिए
उनके सिलवटों पे
नाम का जोर लिए
आप ही
पीड़ पतवार लिए
उनके सिलवटों पे
नाम का जोर लिए
फैलती हुई
अँधेरी रातों में
एक लाश टटोलता हूँ
काबिल हूँ मैं
एक जान ढूंढता हूँ
अँधेरी रातों में
एक लाश टटोलता हूँ
काबिल हूँ मैं
एक जान ढूंढता हूँ
गुम हुए आवाज़ पे
सिहर उठता हूँ
सिहर उठता हूँ
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