माँ! क्या रौशन करूँ?
रुद्ध कण्ठ का तिमिर रास
निर्गन्ध उपवन फास
किसे उज्जवल करूँ
सजल अजल अश्रु धार
विशाल समुन्द्र, अधीर समीर
प्रमाद भरा जीर्ण-क्षीण
तरणि पार कैसे लाऊँ ?
माँ! क्या रौशन करूँ?
वह रूप कहाँ से लाऊँ
फलक पर तुण्ड है
काले बादलों का झुण्ड
शिथिल सा शील पग
चरणों में कैसे लाऊँ
किसे बुलाऊँ
माँ! क्या रौशन करूँ?
No comments:
Post a Comment