Sunday, October 15, 2017

वक़्त



कल की ही बात थी
अब ये ज़माना कैसे गुज़र गया,
अभी अभी तो सुबह थी
अब पहर ये कैसे ढल गई

अजीब दास्तां है
रूहानी अल्फाज की,
दिल ए लब्ज के मयाने
हजार लहरों से उफनती है

दर्दे बयां क्या करू
सौ चुभन भेदे है ज़ीस्त को
कल ही तो मिले थे यहाँ
अब वक़्त ये कैसे  गुज़र गया

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