कल की ही बात थी
अब ये ज़माना कैसे गुज़र गया,
अभी अभी तो सुबह थी
अब पहर ये कैसे ढल गई
अजीब दास्तां है
रूहानी अल्फाज की,
दिल ए लब्ज के मयाने
हजार लहरों से उफनती है
दर्दे बयां क्या करू
सौ चुभन भेदे है ज़ीस्त को
कल ही तो मिले थे यहाँ
अब वक़्त ये कैसे गुज़र गया
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