Sunday, February 28, 2016

इनायत

रहम खुदा, रहम
की पागल मन
गली बाजार में
तेरे नज़र का दीदार लिये
दिशा पुकारे

होशियारी में भी
खंज़र की आवाज आती है
खुदाया रहम कर;
मेरे किस गुनाह की खता लिये
ज़ानाजा को मेरी
कब तलक फेरी करोगे

तेरे प्यार की कसक में
ओ खुदाया;
हंसी भी, कभी
आंसू छलकाये जाती है

परेशान हूँ आपने आप से, की
पास होते हुये भी
नज़र, धुंध चुपाये रहती है

रहम खुदाया, रहम
मासिहा की इनायत कर दे

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