रहम खुदा, रहम
की पागल मन
गली बाजार में
तेरे नज़र का दीदार लिये
दिशा पुकारे
होशियारी में भी
खंज़र की आवाज आती है
खुदाया रहम कर;
मेरे किस गुनाह की खता लिये
ज़ानाजा को मेरी
कब तलक फेरी करोगे
तेरे प्यार की कसक में
ओ खुदाया;
हंसी भी, कभी
आंसू छलकाये जाती है
परेशान हूँ आपने आप से, की
पास होते हुये भी
नज़र, धुंध चुपाये रहती है
रहम खुदाया, रहम
मासिहा की इनायत कर दे
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