मधुर वाणी, कर्णधार लिये
कौन वहाँ जाता है राह थामे हुये
निहशब्द काया, पुलकित हृदय
कौन घोलता है रस द्वार वहाँ
थिरकते बादलों के पार
निश्चल, पावन ठेह आसार
रीमझीम रीमझीम बरस, की
कौन कौंधता है भय आतुर हुये
एक मन, ग्यात अथाह
किस मंज़र पर फुल खिले
निमित अश्रुधार की बेला में
कौन वहाँ जाता है आँचल के ख्वाब में
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