हरेक दास्ताने ए हर्फ़ में
सुलगती है शोला ए नफ़स
ना जाने किस आग में , बतौर
जलता है दिल ओ दिमाग
कौन वहां सुलगाता है आग
दिल धधकता है धुआँ-धुआँ
ना रात यहाँ सस्ती है
ना दिन तारों से सजती है
किस मौजूए जुनून में
फिरता है दर बदर
ना लपट रास आती है
ना आहट तेरी क़दमों की सुनाई देती है
कौन बे दाग यहाँ
पाके कलाम पढता है
हरेक जिरह उफ़ में
तेरी आह सुनाई देती है
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