एक मूल है
जो शास्वत है
बन्धन के उस पार
सम्पूर्ण आलिंगन में
वशीभूत हूँ उसके
मौन विराट लिए
आकार विस्तार लिए -
सौम्य सहृदय सजल नेत्र
खुला आकाश
पंख और परवाज
वही है
चरम उत्कर्ष लिए
रुन्धती है जीवन की सच्चाई
कहीं मिलना, कहीं बिछुरना
गरीबी है जो भींचती है
लघु विराम लिए
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