विचित्र शांति है
सम्पूर्ण आकाश लिए
ठहरे पल को
अपने आगोश में लिए
कोई वंचित है
निर्बोध, टकटकी लगाये
कहने को अभी
और भी रात बाकी है
सहमी सहमी सी है
शब्दों में रची कहानियाँ
एक जीभ तले
असीम सी शांति है
औरों से तुम्हे
भले ही य़ादों का पनाह मिले
पैमाना मेरा रंज है
अपने हीँ लहू से
विचित्र सी विरानगी है
दूर अास लिए
नब्जों में रुधिर सर्द है
आशनागोशी लिए हुये
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