Thursday, January 26, 2017

काठ की पुतली



जिंदगी  अब  और
किस  जगह  ले  जाएगी
जहाँ  छोर मिले
वहीँ  भरमायेगी

काठ  की  पुतली  पर
जले  हुए  घाव
के  दाग ,
दानव  सा  प्रतीत  होता  है

अजीब  सी  आकृति
असंख्य  भाव  लिए
गिरती  है
टन्न  सी  आवाज़  लिए

दोनों  ओर  देखता  हूँ
मैं और  उस  शून्य को
लंबी  सी  बाहं फैलाये
अनंत  आकाश में 

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