तेरे रक़ीब का ये आलम, की
रक्त को रंगत नसीब नहीं
रक्त को रंगत नसीब नहीं
मेरे नाजुक शब्द आशंका से
समुन्दर डुबोये रहती है
समुन्दर डुबोये रहती है
फबकते देर नहीं, की
रौशनी रगड़ मारती है
रौशनी रगड़ मारती है
किसकी सरगोसी में गुलफाम
अपना यौवन लुटाती है, नाजां
अपना यौवन लुटाती है, नाजां
पल भर की मौन
एक सरिया चुभोती है
एक सरिया चुभोती है
सर्द हो चला है सरुरे-इश्क़
मिजाज को अब रंगत नसीब नहीं होती
मिजाज को अब रंगत नसीब नहीं होती
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