जाती नहीं कलेजे से
प्यास मन की;
चहेटती है जिंदगी
सूनी सी आस लिए
कौन रुलाएगा मुझे
फबत अँखियों से ;
आठों पहर कसमसाहट की
कसर छोड़ जाती है
लंबी सी है
कपड़ों की थान तेरी;
पनहा सांसों की
अब कम होती जाती है
जाती नहीं थाप तबले से
तेरे आने की;
थिरकते हैं लब पे
अमावस की ये रात
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