अब विचारों में
जगह नहीं होगी
अस्थि भार सा होगा
संतप्त यह मन
कटे पंख -
विहंगों की उदासीनता
खुले आकाश को
उदासियों में लिपटेगी
बेताबी 'नज़रों की नहीं है यहाँ -
अविरल उनसे है
जिसकी आहट की टोह में
रोशनी भार सा प्रतीत होता है
जगह नहीं होगी
अस्थि भार सा होगा
संतप्त यह मन
कटे पंख -
विहंगों की उदासीनता
खुले आकाश को
उदासियों में लिपटेगी
बेताबी 'नज़रों की नहीं है यहाँ -
अविरल उनसे है
जिसकी आहट की टोह में
रोशनी भार सा प्रतीत होता है
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