Tuesday, May 2, 2017

मैं अपने पिताजी का बेटा हूँ, और बेटी भी



मेरे पिता बड़े अच्छे हैं
उनकी लिखावट भी मुझ से सुन्दर है
मैं ही उनका बेटा हूँ, और बेटी भी

साइकिल की अगली सीट पर बैठाकर
मुझे हर रोज स्कूल पहुँचते थे
जीवन का सैर करवाते थे, बताते थे

बचपन की हर खवाइश को पूरा करते थे
सर्कस क्या, और जादूगर की जादूगिरी क्या
झूला झुलाते थे, आसमान की सैर करवाते थे

अपने लाइब्रेरी में मुझे जगह देते थे
आज़ादी की कहानी और रानी लक्ष्मीबाई
वीरांगना जैसी दंभ भरते थे, सीखाते थे

मेरे पिता बड़े अच्छे हैं
उनके गुस्से में मुझे प्यार झलकता है
मैं ही उनका बेटा हूँ, और बेटी भी

बाज़ार से घर आते वक़्त हाँथ में
मीठास लटकाये हुए आते थे
नए कपड़े, और नए जूते की टाप छिपाये आते थे

मेरे उखड़े मुख को झट से ताड़ लेते थे
माता से सवाल जवाब होता, और
झट से डॉक्टर को बुलावा भिजवाते थे

मेरी लिखावट को, हज़ार अक्षरों से
चार लाईनो वाली लकीर पर हाँथ फिरवाते थे
कभी स्लेट पर, कभी पन्नों पर हिज्जे करवाते थे

मेरे पिता बड़े अच्छे हैं
उनकी लिखावट भी मुझ से सुन्दर है
मैं ही उनका बेटा हूँ, और बेटी भी

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