बचपन से ही खुली हवा में
विचरने की आदत सी थी
स्कूल बस में
किनारे वाली खिड़की पर बैठने की बात होती
हाँफते हुए, पीठ पर बस्ते का बोझ
लपक कर बैठ जाता, और
लोहे की रॉड पकड़कर
अध्-खुली खिड़की से
बाहर झाँकने की कोशिश करता
आज भी अध्-उमरी में भी
यह कसक जिन्दा है
हवाई यात्रा की कमियों को
बंद खिड़कियों से जब देखता हूँ, तो
पॉयलट के बाल सफेद नज़र आने लगते हैं
उम्र से डर किसको नहीं लगता
अब सबकुछ बंद-बंद सा प्रतीत होता है
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