Tuesday, November 1, 2016

कोमलता


सुबकते हुए;
आँचल में तेरे
मैंने
ममतामयी हांथों को
मुहँ टटोलते
और ,
भला कहीं पाया है
झुर्रिया बन चेहरे की
मैंने तुझसे सुन्दर
और,
भला कहीं देखा है
तुम्हीं हो न माँ
जिसने
गरजते -बरसते ज़माने को
करवटे बदलते महसूस किया है
सुबकते हुए;
पैर तले तेरे
मैंने
फटे हुए एड़ियों को
सहलाते
और ,
भला कहीं देखा है
एक बून्द
गर्म सांसों की
और,
भला अपने गालों पर कहीं पाया है
तुम्हीं हो न माँ
जिसने
कराहों को
अपनी कोमलता तले छुपा रखा है

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