Sunday, May 1, 2016

रात की रानी



सालते  हैं  जब 
लबों  पर  तनहाई की कसक,
उसकी बन्दगी में 
अब दिन रात गुजरती है

उस शमा को क्या कहें 
जीसकी आग,
लालटेंन की चिमनी से 
नसीब पाती है

बहुत देख ली 
ज़माने की बेरुखी,
अब तो साईकील सवार को भी 
मोटरसाईकिल की आवाज अजीब लगती है

रौशनी से रौशन रहे 
दुआ का ताज पहन,
परिसर में बसती है जीसकी महक,
वो, रात की रानी है

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